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भगवान शिव की तरह परिवार को जोड़कर रखने का आर्ट क्या आप में भी है  This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

भगवान शिव की तरह परिवार को जोड़कर रखने का आर्ट क्या आप में भी है

गृहस्थी की गाड़ी कई पहियों पर टिकी होती है, और इसमें से किसी एक पहिए का भी बैलेंस बिगड़ गया, तो गाड़ी अपने ट्रैक से नीचे उतर जाती है। इसी संतुलन को बनाए रखने के लिए, फैमिली मेंबर्स के साथ आपसी तालमेल बिठाना यानी एक फैमिली मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। लेकिन परिवार को बांध कर रखने का यह आर्ट, सीखे कहां से? इस सवाल का जवाब, भगवान शिव की जिंदगी में छिपा है। परिवार की एक फॉर्मल डेफिनेशन की बात करें, तो ये 2 या इससे ज्यादा लोगों का एक ऐसा ग्रुप है, जो by birth, marriage या adoption से एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं। basically, परिवार को ब्लड रिलेशन से ही डिफाइन किया जाता है। आसान शब्दों में फैमिली का मतलब, एक छत के नीचे रहने वाले लोगों का ग्रुप है, वो छत घर और एक ऑफिस की भी की हो सकती है और यूनिवर्स की भी। उदाहरण के लिए हम, पूरे यूनिवर्स को ही एक फैमिली मानते हैं। इसका मतलब यह है कि हम हर किसी को, अपनों की तरह ट्रीट करें। परिवार में हर एक सदस्य अलग होता है। सभी के अलग इंटरेस्ट, अलग ज़रूरतें और अलग मुद्दे हैं, लेकिन फिर भी सब मिलकर एक परिवार बनाते हैं। वैवाहिक जीवन को सही तरीके से चलाना, जितना आसान दिखता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यहां हर कोई दूसरे से अलग होता है। ज्यादातर परिवारों में मनमुटाव और अलगाव देखने को मिलता है, आखिर इसका कारण क्या है।

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सबसे पहला सवाल यह है कि किसी के साथ हमारी अनबन होती क्यों है, हम जो चाहते हैं, सामने वाला वैसा नहीं करता। मतलब हम दूसरों की राय को स्वीकार नहीं करते। आज से, 1 दशक पहले देखें, तो लोग, दादा- दादी, अंकल-आंटी सभी के साथ, एक भरे-पूरे परिवार में मिलजुल कर रहते थे। धीरे-धीरे लोगों की सोच बदली और माइक्रो फैमिली का ट्रेंड बढ़ा। इस माइक्रो फैमिली में एक कपल और उसके 1 या 2 बच्चे हैं, जिनकी आपस में ही नहीं बनती। कारण- हम एक-दूसरे को सुनना और स्वीकार करना भूल गए हैं। आजकल मां-बाप नौकरी में बिजी हैं, और बच्चे पढ़ाई और करियर में। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि चाहे परिवार, बड़ा है या छोटा, उसका साइज नहीं, बल्कि हर किसी की सहनशीलता और समझ, उसे आपस में बांध कर रखती है। आपसी तालमेल बिठाकर रखने की यह कला, हम भगवान शिव की जिंदगी से सीख सकते हैं। भगवान शिव के परिवार में हर कोई अलग है। शिव खुद महाकाल, माता गौरी सौभाग्य की देवी, इनके एक पुत्र भगवान कार्तिकेय पराक्रम और शक्ति के प्रतीक, तो दूसरे भगवान गणपति बुद्धि के दाता। इतना ही नहीं, भगवान शिव का वाहन नंदी है, और माता पार्वती का वाहन शेर, जो एक-दूसरे से बिलकुल ऑपोजिट होते हुए, भी परिवार के सदस्य हैं। शेर, बैल का शिकार करता है, लेकिन इनके परिवार में दोनों एक साथ रहते हैं। भगवान गणपति का वाहन मूषक है और भगवान शिव के गले में सांप है, दोनों एक-दूसरे के शत्रु हैं। इसी तरह शिव के पुत्र कार्तिकेय का वाहन- मोर सांप का दुश्मन है।

आप देख सकते हैं कि भगवान शिव का परिवार जितना अलग है, उतनी ही उस परिवार में एकता है। ठीक वैसे ही, भले ही हमारे परिवार में सभी का स्वभाव अलग-अलग है, जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करके हम परिवार में तालमेल बिठा सकते हैं। भोलेनाथ और उनके परिवार से एक और बात यह भी सीखी जा सकती है कि हमारा बाहरी रूप और सौंदर्य से ज्यादा, हमारे गुण और सोच मायने रखती है। वरना गले में नाग रखने वाले और भूतों की सेना लिए एक अघोरी भगवान शिव, पूरे परिवार और इस समस्त संसार के स्वामी न होते। इसलिए यह हम पर निर्भर करता है कि हम चाहें तो शंकर जी की सिर्फ पूजा करें, या फिर उनके परिवार के गुणों को जीवन में उतार लें। प्रॉब्लम्स को सुलझाने के लिए मिलकर काम करें। पार्टनर हो या फिर बच्चे, उन्हें शांति से सुनना और उनकी राय का सम्मान करना, फैमिली में संतुलन बनाए रखता है। अच्छा आप बताएं, कि अपने परिवार, पिता, माता, बच्चों को रोज सुनते हैं। एक-दूसरे की लाइफ में इंटरेस्ट लें, लेकिन इतना नहीं कि आपका वो इंटरस्ट, इंटरफेरेंस बन जाए। एक कहावत, है कि हाथ की सभी उंगलियां एक जैसी नहीं होती हैं, परिवार के साथ भी ठीक यही कॉन्सेप्ट है। यहां हर किसी का एक अलग नजरिया है। भगवान शिव के परिवार में देवताओं से लेकर पशु, पक्षी और भूत- प्रेत तक सभी एक साथ रहते हैं। अगर हम सही हैं, तो आपके परिवार में भी मनुष्य और जानवर के तौर पर आपका कोई पैट होगा। इतनी डायवर्सिटी के बावजूद भगवान शिव, उनका पूरा परिवार एक है, लेकिन परिवार को जोड़कर रखने का ये आर्ट, क्या आप में भी है?